गुजरात श्रम कानून संशोधन विधेयक-2015 को स्वीकृति :
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने श्रम कानून (गुजरात संशोधन) विधेयक-2015 को स्वीकृति प्रदान की, इससे गुजरात विधानसभा में फरवरी 2015 में पारित विधेयक कानून बन सकेगा.
विधानसभा द्वारा 25 फरवरी को विधेयक श्रम कानूनों को लचीला बनाने हेतु पारित किया गया.
इसमें उद्योगों के दौरान मजदूरों एवं कर्मचारियों के मध्य होने वाले विवादों को अदालतों से बाहर सुलझाने पर बल दिया गया है.
कानून की विशेषताएं:
इसमें जनपयोगी सेवाओं में हड़ताल पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रावधान दिया गया है.
इसके अनुसार मजदूर किसी उद्योग द्वारा लिए गये निर्णय पर तीन वर्ष की बजाय एक वर्ष के भीतर आपत्ति उठा सकेंगे.
इसका अर्थ यह हुआ कि मजदूर केवल एक वर्ष में ही किसी निर्णय के विरोध में अदालत में जा सकेंगे.
अदालती मामलों से बचने के लिए इस विधेयक में अनावश्यक और अंतहीन मुकदमेबाजी कम की गयी है. इसके अनुसार मजदूर बिना अदालती कार्यवाही के नियोक्ता से समझौता कर सकते हैं.
अदालती मामलों से बचने के लिए इस विधेयक में अनावश्यक और अंतहीन मुकदमेबाजी कम की गयी है. इसके अनुसार मजदूर बिना अदालती कार्यवाही के नियोक्ता से समझौता कर सकते हैं.
अदालत से बाहर किये गये समझौते में सरकार नियोक्ता से 21,000 रुपये जुर्माना वसूलेगी तथा आहत व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को 75 प्रतिशत धनराशि दी जाएगी.
इसमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में कुछ बदलाव किये गये हैं जिसमें सरकार को उद्योगों पर अधिक अधिकार दिए गये हैं.
इसके अनुसार किये गये बदलावों में जिन उद्योगों में 20 से अधिक मजदूर कार्यरत हैं उनमें चेक द्वारा भुगतान किया जायेगा जो कि प्रधानमंत्री जन धन योजना को भी बल प्रदान करेगा.
यह विधेयक, ‘गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध में नियंत्रण विधेयक’ के साथ राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा गया था.
इसमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में कुछ बदलाव किये गये हैं जिसमें सरकार को उद्योगों पर अधिक अधिकार दिए गये हैं.
इसके अनुसार किये गये बदलावों में जिन उद्योगों में 20 से अधिक मजदूर कार्यरत हैं उनमें चेक द्वारा भुगतान किया जायेगा जो कि प्रधानमंत्री जन धन योजना को भी बल प्रदान करेगा.
यह विधेयक, ‘गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध में नियंत्रण विधेयक’ के साथ राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा गया था.
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